Shani Mantra : शनि देव एक ऐसे देव जो व्यक्तियों को उनके कर्म के अनुसार फल देते हैं। अगर किसी की व्यक्ति कुंडली में शनि दोष है तो उसकी वजह से व्यक्ति की जिंदगी में समस्या ही समस्याएं आती हैं। शनि दोष की वजह से व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर होता है बीमारियों से ग्रसित होता है इसके अलावा कई तरह की समस्याएं जिंदगी में आती हैं। अगर अपने सभी समस्याओं से ग्रसित हैं और आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आप शनि मंत्र ( Shani Mantra ) का जाप करें।
ज्योतिष आचार्याओं के अनुसार अगर शनि दोष पीड़ित व्यक्ति शनि देव की पूजा करता है और शनि मंत्र का जाप करता है तो उसकी जिंदगी में शनि देव तरक्की के नए मार्ग खोलते हैं। जिंदगी में आए सभी समस्याएं धीरे-धीरे खत्म होती है और जिंदगी की किस्मत चमकता है और जिंदगी में सुख समृद्धि वैभव के साथ-साथ आर्थिक स्थिति और अपार धन की प्राप्ति होती है। अगर आपकी कुंडली में शनि दोष नहीं है तो फिर भी आप शनि मंत्र ( Shani Mantra ) का जाप करके शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपनी जिंदगी में दोबारा सुख समृद्धि रुपया पैसा प्राप्त कर सकते हैं।
शनिदेव को खुश करने के लिए करें इन मंत्रों का जाप ( Shani Mantra )
अगर आप अपनी जिंदगी में सभी समस्याओं से परेशान हो चुके हैं, आपकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी है, आपको कोई रास्ता नहीं दिख रहा है, आप एक बार नीचे बताए गए शनि मंत्र का जाप करें। हम आपके यहां पर कुछ शनि मंत्र के बारे में बताएंगे आप शनि मंत्र ( Shani Mantra ) को प्रत्येक शनिवार को जाप करते हैं तो इसका बहुत अधिक प्रभाव देखने मिलता है।
शनि देव को प्रसन्न करने के सरल मंत्र
आप प्रत्येक शनिवार को शनि देव मंदिर जाकर इस मंत्र का जाप करते थे इससे शनि देव आपसे बहुत ही जल्द प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
“ॐ शं शनैश्चराय नमः”
“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः”
“ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।
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शनिदेव के 108 नाम का जाप करें
अगर आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो प्रत्येक शनिवार को शनि देव की पूजा करें और शनि देव के सामने हाथ जोड़कर शनि देव के 108 नाम का जाप करें। ऐसा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होगी और आपकी सभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। कारोबार करियर में सफलता प्राप्त होगी और अशुभ ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी।
ऊँ शनैश्चराय नमः
ऊँ शान्ताय नमः
ऊँ सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः
ऊँ शरण्याय नमः
ऊँ वरेण्याय नमः
ऊँ सर्वेशाय नमः
ऊँ सौम्याय नमः
ऊँ सुरवन्द्याय नमः
ऊँ सुरलोकविहारिणे नमः
ऊँ सुखासनोपविष्टाय नमः
ऊँ सुन्दराय नमः
ऊँ घनाय नमः
ऊँ घनरूपाय नमः
ऊँ घनाभरणधारिणे नमः
ऊँ घनसारविलेपाय नमः
ऊँ खद्योताय नमः
ऊँ मन्दाय नमः
ऊँ मन्दचेष्टाय नमः
ऊँ महनीयगुणात्मने नमः
ऊँ मर्त्यपावनपदाय नमः
ऊँ महेशाय नमः
ऊँ छायापुत्राय नमः
ऊँ शर्वाय नमः
ऊँ शततूणीरधारिणे नमः
ऊँ चरस्थिरस्वभा वाय नमः
ऊँ अचञ्चलाय नमः
ऊँ नीलवर्णाय नम:
ऊँ नित्याय नमः
ऊँ नीलाञ्जननिभाय नमः
ऊँ नीलाम्बरविभूशणाय नमः
ऊँ निश्चलाय नमः
ऊँ वेद्याय नमः
ऊँ विधिरूपाय नमः
ऊँ विरोधाधारभूमये नमः
ऊँ भेदास्पदस्वभावाय नमः
ऊँ वज्रदेहाय नमः
ऊँ वैराग्यदाय नमः
ऊँ वीराय नमः
ऊँ वीतरोगभयाय नमः
ऊँ विपत्परम्परेशाय नमः
ऊँ विश्ववन्द्याय नमः
ऊँ गृध्नवाहाय नमः
ऊँ गूढाय नमः
ऊँ कूर्माङ्गाय नमः
ऊँ कुरूपिणे नमः
ऊँ कुत्सिताय नमः
ऊँ गुणाढ्याय नमः
ऊँ गोचराय नमः
ऊँ अविद्यामूलनाशाय नमः
ऊँ विद्याविद्यास्वरूपिणे नमः
ऊँ आयुष्यकारणाय नमः
ऊँ आपदुद्धर्त्रे नमः
ऊँ विष्णुभक्ताय नमः
ऊँ वशिने नमः
ऊँ विविधागमवेदिने नमः
ऊँ विधिस्तुत्याय नमः
ऊँ वन्द्याय नमः
ऊँ विरूपाक्षाय नमः
ऊँ वरिष्ठाय नमः
ऊँ गरिष्ठाय नमः
ऊँ वज्राङ्कुशधराय नमः
ऊँ वरदाभयहस्ताय नमः
ऊँ वामनाय नमः
ऊँ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः
ऊँ श्रेष्ठाय नमः
ऊँ मितभाषिणे नमः
ऊँ कष्टौघनाशकर्त्रे नमः
ऊँ पुष्टिदाय नमः
ऊँ स्तुत्याय नमः
ऊँ स्तोत्रगम्याय नमः
ऊँ भक्तिवश्याय नमः
ऊँ भानवे नमः
ऊँ भानुपुत्राय नमः
ऊँ भव्याय नमः
ऊँ पावनाय नमः
ऊँ धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः
ऊँ धनदाय नमः
ऊँ धनुष्मते नमः
ऊँ तनुप्रकाशदेहाय नमः
ऊँ तामसाय नमः
ऊँ अशेषजनवन्द्याय नमः
ऊँ विशेशफलदायिने नमः
ऊँ वशीकृतजनेशाय नमः
ऊँ पशूनां पतये नमः
ऊँ खेचराय नमः
ऊँ खगेशाय नमः
ऊँ घननीलाम्बराय नमः
ऊँ काठिन्यमानसाय नमः
ऊँ आर्यगणस्तुत्याय नमः
ऊँ नीलच्छत्राय नमः
ऊँ नित्याय नमः
ऊँ निर्गुणाय नमः
ऊँ गुणात्मने नमः
ऊँ निरामयाय नमः
ऊँ निन्द्याय नमः
ऊँ वन्दनीयाय नमः
ऊँ धीराय नमः
ऊँ दिव्यदेहाय नमः
ऊँ दीनार्तिहरणाय नमः
ऊँ दैन्यनाशकराय नमः
ऊँ आर्यजनगण्याय नमः
ऊँ क्रूराय नमः
ऊँ क्रूरचेष्टाय नमः
ऊँ कामक्रोधकराय नमः
ऊँ कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः
ऊँ परिपोषितभक्ताय नमः
ऊँ परभीतिहराय नमः
ऊँ भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमः
शनि स्तोत्र का का पाठ करें
प्रत्येक शनिवार को शनि देव की पूजा करने के बाद आप शनि देव के सामने बैठकर शनि स्त्रोत का पाठ करें। शनि स्त्रोत का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10
श्री शनि चालीसा का पाठ करें
प्रत्येक शनिवार को शनि देव की पूजा करने के बाद आप हाथ जोड़कर श्री शनि चालीसा का पाठ करें और आरती करें।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥रावण की गति-मति बौराई।
रामचंद्र सों बैर बढ़ाई॥दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥पांडव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥जंबुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा॥लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
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