Bhaye Pragat Kripala – भए प्रगट कृपाला दीन दयाला भगवान श्री राम जी की स्तुति है, भए प्रगट कृपाला दीन दयाला ( Bhaye Pragat Kripala ) रामचरितमानस के बालकांड में उपलब्ध है, धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भए प्रगट कृपाला दीन दयाला ( Bhaye Pragat Kripala ) भगवान श्री राम की स्तुति करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है भगवान श्री राम ने सभी लोगों को धर्म के राह पर चलने की सलाह दी है, भगवान श्री राम की पूजा करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और मान्यता है कि भए प्रगट कृपाला दीन दयाला ( Bhaye Pragat Kripala ) भजन सुनने से या भजन करने से मनुष्य के सभी दुख तकलीफ कष्ट दूर होते हैं।
Bhaye Pragat Kripala – भए प्रगट कृपाला दीन दयाला लिखित में
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित,
लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,
माया गुन गो पार ॥
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ( FAQ )
रामायण की सबसे पावरफुल चौपाई कौन सी है ?
रामायण की सबसे पावरफुल चौपाई “प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा॥” इस चौपाई को किसी भी यात्रा शुरू करने से पहले की जाती जिससे सभी कार्य शुभ होते हैं।
संकट दूर करने के लिए रामायण की सबसे पावरफुल चौपाई कौन सी है ?
संकट दूर करने के लिए “जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥” चौपाई है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए कौन सी चौपाई है ?
“बयरु न कर काहू सन कोई। रामप्रताप विषमता खोई॥
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