Chaturasi Path – चतुरासी जी का पाठ हिंदी में

Chaturasi Path : चतुरासी जी का पाठ बहुत ही सिद्ध पाठ है, प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) 24 घंटे में एक बार करता है तो उसको उतनी बड़ी सिद्धि प्राप्त होती है जितनी सिद्धि किसी साधन से प्राप्त नहीं होती है। प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) करने से आपके जीवन में कभी दुर्गति नहीं होगी आपकी ग्रह नक्षत्र खराब नहीं होंगे, अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से प्रत्येक दिन चतुरासी जी का पाठ करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है कभी सड़क दुर्घटना नहीं होगी और ना ही उस व्यक्ति की कभी कोई किसी भी तरह का कष्ट होगा।

इस दुनिया में कोई भी इंसान अपनी सभी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) कर सकता है। चपरासी जी का पाठ करके आप अपने आने वाली समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं और आप एक सुख समृद्धि और शांति वाला जीवन जी सकते हैं। आपको चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) करने में किसी भी तरह की कोई समस्या ना हो इसके लिए है हम आपके लिए चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) लिखित में लेकर आए हैं आप इसको बूकमर्क करके प्रतिदिन चतुरासी जी का पाठ कर सकते हैं –

Chaturasi Path – चतुरासी जी का पाठ हिंदी में

श्री हित चतुरासी जी पद 1

जोई-जोई प्यारौ करै सोई मोहि भावै,
भावै मोहि जोई सोई-सोई करें प्यारे |

मोकों तौ भावती ठौर प्यारे के नैनन में,
प्यारौ भयौ चाहै मेरे नैंनन के तारे ||

मेरे तन मन प्राण हूँ ते प्रीतम प्रिय,
अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोसों हारे |

जै श्रीहित हरिवंश हंस-हंसिनी साँवल-गौर,
कहौ कौन करै जल-तरंगनि न्यारे ||

श्री हित चतुरासी जी पद 2

प्यारे बोली भामिनी आजु नीकी जामिनी,
भेंट नवीन मेघ सों दामिनी ||

मोहन रसिक-राइरी माई,
तासौं जु-मान करै, ऐसी कौन कामिनी |

(जै श्री) हित हरिवंश श्रवण सुनत प्यारी,
राधिका रवन सों मिली गज-गामिनी ||

श्री हित चतुरासी जी पद 3

प्रात समय दोऊ रस लंपट,
सुरत-जुद्ध जय जुत अति फूल |

श्रम वारिज घनविन्दु वदन पर,
भूषण अंगहि अंग विकूल ||

कछु रह्यौ तिलक सिथिल अलकावलि,
वदन कमल मानौं अलि भूल |

जै श्रीहित हरिवंश मदन-रंग रँगि रहे,
नैन-बैंन कटि सिथिल दुकूल ||

श्री हित चतुरासी जी पद 4

आजु तौ जुवति तेरौ, वदन आनन्द भर्यो,
पिय के संगम के सूचत सुख चैंन ।

आलस वलित बोल, सुरंग रँगे कपोल,
विथकित अरुण उनींदे दोऊ नैंन ॥

रुचिर तिलक लेश किरत कुसुम केश,
सिर सीमंत भूषित मानौं तैं न ।

करुणाकर उदार राखत कछु न सार,
दसन-वसन लागत जब दैन ॥

काहे कौं दुरत भीरु, पलटे प्रीतम चीर,
बस किये श्याम सिखै सत मैंन ।

गलित उरसि माल सिथिल किंकिनी जाल,
जै श्रीहित हरिवंश लता-गृह सैंन ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 5

आजु प्रभात लता-मंदिर में,
सुख बरसत अति हरषि युगल वर ।

गौर-श्याम अभिराम रंगभरे,
लटकि-लटकि पग धरत अवनि पर ॥
कुच-कुमकुम रंजित मालावलि,

सुरत नाथ श्रीश्याम धाम धर ।
प्रिया प्रेम के अंक अलंकृत,

चित्त्रित चतुर शिरोमनि निजकर ॥
दम्पति अति अनुराग मुदित कल,

गान करत मन हरत परस्पर ।
जै श्रीहित हरिवंश प्रशंस-परायन,
गायन अलि सुर देत मधुर तर ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 6

कौन चतुर जुवती प्रिया, जाहि मिलत लाल चोर है रैन ।
दुरवत क्यौंऽव दुरै सुनि प्यारे, रंग में गहिले चैंन में नैन ॥

उर नख-चंद्र विराने, पट अटपटे से बैन ।
जैश्रीहित हरिवंश रसिक राधापति, प्रमथित मैन ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 7

आजु निकुंज मंजु में खेलत, नवल किशोर नवीन किशोरी ।
अति अनुपम अनुराग परस्पर, सुनि अभूत भूतल पर जोरी ॥

विद्रुम फटिक विविध निर्मित धर, नव कर्पूर पराग न थोरी।
कोमल किसलय सयन सुपेसल, तापर श्याम निवेसित गोरी ॥

मिथुन हास-परिहास परायन, पीक कपोल कमल पर झोरी।
गौर-श्याम भुज कलह मनोहर, नीवी-बंधन मोचत डोरी ॥

हरि-उर-मुकुर विलोकि अपनपौ, विभ्रम विकल मान-जुत भोरी ।
चिबुक सुचारु प्रलोइ प्रबोधत, पिय प्रतिबिंब जनाय निहोरी ॥

नेति नेति बचनामृत सुनि-सुनि, ललितादिक देखत दुरि चोरी ।
जै श्रीहित हरिवंश करत कर धूनन, प्रणयकोप मालावलि तोरी ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 8

अति ही अरुण तेरे नैंन नलिन री।
आलस जुत इतरात रँगमगे,

भये निशि जागर मषिन मलिन री ॥
सिथिल पलक में उठत गोलक गति,

बिंधयौ मोहन मृग सकत चलि न री।
जै श्रीहित हरिवंश हंस कल गामिनि,
संभ्रम देत भ्रमरन अलिन री ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 9

बनी श्रीराधा-मोहन की जोरी।
इन्द्रनीलमणि श्याम मनोहर,
सातकुम्भ तन गोरी ॥

भाल विशाल तिलक हरि कामिनि,
चिकुर चंद्र बिच रोरी।
गज-नायक प्रभु चाल गयंदनि,
गति वृषभानु किसोरी ॥

नील निचोल जुवति मोहन पट,
पीत अरुण सिर खोरी।
जै श्रीहित हरिवंश रसिक राधापति,
सुरत रंग में बोरी ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 10

आजु नागरी-किशोर भाँवती विचित्र जोर,
कहा कहौं अंग-अंग परम माधुरी ।
करत केलि कंठ मेलि बाहुदंड गंड-गंड,
परस सरस रास-लास मंडली जुरी ॥

श्यामसुन्दरी बिहार, बाँसुरी मृदंग तार, मधुर घोष नूपुरादि किंकिनी चुरी।
जै श्री देखत हरिवंश आलि,
निर्त्तनी सुधंग चाल,
वारि फेर देत प्राण देह सौं दुरी ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 11

मंजुल कल कुंज देश, राधा हरि विशद वेश,
राका नभ कुमुद-बंधु शरद जामिनी ।
साँवल दुति कनक अंग, बिहरत मिलि एक संग,
नीरद मनौ नील मध्य लसत दामिनी ॥

अरुण पीत नव दुकूल, अनुपम अनुराग मूल,
सौरभयुत शीत अनिल मंद गामिनी ।
किसलय दल रचित शैन, बोलत पिय चाटु बैन,
मान सहित प्रतिपद प्रतिकूल कामिनी ॥

मोहन मन मथत मार, परसत कुच-नीवि-हार,
वेपथयुत नेति-नेति बदत भामिनी ।
नरवाहन प्रभु सुकेलि,
बहुविध भर भरत झेलि,
सौरत रस रूप नदी जगत-पावनी ॥

श्री हित चतुरासी जी पद 12

चलहि राधिके सुजान, तेरे हित सुख निधान,
रास रच्यौ श्याम तट कलिंद नन्दिनी ।
निर्त्तत युवती समूह, राग-रंग अति कुतूह,
बाजत रसमूल मुरलिका अनन्दिनी ॥

वंशीवट निकट जहाँ, परम रमनि भूमि तहाँ,
सकल सुखद मलय बहै वायु मन्दिनी ॥

जाती ईषद विकास, कानन अतिसय सुवास,
राका निशि सरद मास विमल चंदिनी ॥

नरवाहन प्रभु निहारि, लोचन भरि घोष नारि,
नख-सिख सौन्दर्य काम-दुख-निकन्दिनी ।

विलस भुज ग्रीव मेलि, भामिनी सुख-सिन्धु झेलि,
नव निकुंज श्याम केलि,जगत-वन्दिनी ॥

राधा जी के 28 नाम जाप करने से पूरी होगी सभी मनोकामनाएं

चतुरासी जी का पाठ कैसे करें?

प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार बताया गया है कि आप चतुरासी जी का पाठ ( Chaturasi Path ) कैसे कर सकते हैं। प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार आप चपरासी जी का पाठ 24 घंटे में कभी भी कर सकते हैं जब आप फ्री हो आप चपरासी जी का पाठ का गायन कर सकते हैं। चपरासी जी का पाठ गायन करना बहुत ही शुभ माना गया है। आप 24 घंटे में एक बार चपरासी जी का पाठ का गायन कर सकते हैं इसके अलावा आप जब भी फ्री हो आप मन ही मन चतुरासी जी का पाठ का चिंतन कर सकते हैं।

प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार आप 24 घंटे में किसी भी समय स्नान करके एकांत जगह पर या फिर पूजा स्थल पर बैठकर आप चतुरासी जी का पाठ करें। चपरासी जी का पाठ करने में 1 घंटे से डेढ़ घंटे का समय लगता है इसलिए आप जब बिल्कुल पूरी तरह से फ्री हो तब आप पूरे अपने मन को एकत्रित करके पूरे सच्चे भक्ति भाव के साथ चतुरासी जी का पाठ का गायन कर सकते हैं।

चतुरासी जी का पाठ करने के फायदे ( Chaturasi Path Labh)

  1. प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति चतुर्थी की का पाठ 24 घंटे में एक बार करता है उसको करने के बाद 24 लाख योनियों में नहीं जाना पड़ता है।
  2. चतुरासी जी का पाठ करने से आपके जीवन में सुख समृद्धि शांति आती है।
  3. अगर व्यक्ति प्रत्येक 24 घंटे में एक बार चतुरासी जी का पाठ करता है तो उसको जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
  4. अगर कोई व्यक्ति चतुरासी जी के पाठ का कोई एक भी पद याद कर लेता है और उसका दिन में 100 या 200 बार मन ही मन चिंतन करता है तो उस व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान होती है।
  5. चतुरासी जी का पाठ 24 घंटे में करने पर आपके जीवन में सिर्फ मंगल ही मंगल होगा, जीवन में आने वाले सभी समस्याएं अपने आप दूर हो जाएगी।

चतुरासी जी की पाठ के नियम ( Chaturasi Path Niyam )

  • चतुरासी जी की पाठ का आप सच्चे श्रद्धा और प्रेम भाव के साथ करें।
  • चतुरासी जी का पाठ आप हरदम स्नान करने के बाद और स्वच्छ कपड़े पहनकर करें।
  • चपरासी जी का पाठ करते समय आपका मन बिल्कुल शांत होना चाहिए और मन आपका एकाग्र होना चाहिए।
  • चतुरासी जी का पाठ आप ग्यान करके करते हैं तो इसका बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • अगर किसी व्यक्ति को चतुरासी जी का पाठ गायन करने में समस्या होती है तो आप ऑडियो के माध्यम से भी पाठ का आनंद ले सकते हैं।
  • अगर आपके पास चतुरासी जी की पुस्तिका है तो आप उसको अपने पास रखें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ( FAQ )

चतुरासी जी का पाठ कब करना चाहिए ?

चतुरासी जी का पाठ आप 24 घंटे में कभी भी कर सकते हैं।

क्या हम चतुरासी जी का पाठ शौचालय में कर सकते हैं ?

चतुरासी जी का पाठ शौचालय में नहीं कर सकते बल्कि आप मन ही मन चतुरासी की पाठ का चिंतन कर सकते हैं।

क्या हम चतुरासी जी का पाठ ऑडियो के माध्यम से कर सकते हैं ?

जी हां अगर आपको चतुरासी जी पाठ करने में समस्या होती है तो आप ऑडियो के माध्यम से भी चतुरासी जी का पाठ कर सकते हैं।

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