महाविद्या पाठ कब करना चाहिए : महाविद्या पाठ के बारे में अधिकतर लोगों को मालूम नहीं है, महाविद्या पाठ एक ऐसा सिद्ध प्रयोग है, यानि जिंदगी के सभी समस्याओं का एक अचूक उपाय है। आप अपनी जिंदगी में हर प्रकार की दुख तकलीफों से परेशान हो चुके हैं और आपकी कड़ी मेहनत और कड़े संघर्ष के बाद भी कोई हल नहीं निकलता है तो इसके लिए महाविद्या पाठ ( Maha Vidya Path ) एक सबसे रामबाण उपाय है।
हिंदू शास्त्रों में पूजा के बहुत बड़ा महत्व है, कभी-कभी हमारे कड़ी मेहनत कड़े संघर्ष और कई प्रयासों के बाद भी हमारी जिंदगी की दुख तकलीफ दूर नहीं होते हैं। इसके पीछे बहुत सारे कारण होते हैं, तब हम हर जगह से हार कर भगवान के चरणों में जाते हैं, भगवान की पूजा आराधना करने से हमारी जिंदगी कि तुम तकलीफ दूर होते हैं, इनमें से ही एक महाविद्या पाठ है, चलिए जानते हैं महाविद्या पाठ कब करना चाहिए।
महाविद्या पाठ कब करना चाहिए ? ( Maha Vidya Path )
महाविद्या पाठ ( Maha Vidya Path ) करने से मां दुर्गा जी की कृपा से भक्ति मुक्ति सुख सर्व संपत्ति प्राप्ति होती है इसके साथ साथी नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। अगर आप अपनी जिंदगी में सुख समृद्धि शांति चाहते हैं और अपने जिंदगी के सभी सर दुख बड़ा शत्रु न और सभी कासन और सभी रोगों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो इसका एक ही रामबाण उपाय हुआ है वह है महाविद्या पाठ।
महाविद्या पाठ नवरात्रि या फिर गुप्त नवरात्रि के साथ-साथ किसी भी शुभ दिन से शुरुआत कर सकते हैं, आप चाहे तो महाविद्या पाठ मां दुर्गा अष्टमी अमावस्या शनिवार मंगलवार गुरुवार से शुरू कर सकते हैं। महाविद्या पाठ आप अपने समर्थ के अनुसार 9 दिन 11 दिन या 21 दिन नियमित रूप से करने से आपको महाविद्या पाठ का फल मिलता है।
नोट : महाविद्या पाठ चतुर्दशी या अमावस्या तिथि के दिन करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
महाविद्या पाठ के फायदे, चमत्कारिक लाभ
- महाविद्या पाठ करने से पितृ दोष और हर प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
- महाविद्या अनुष्ठान करने से भूत प्रेत से मुक्ति मिलती है और जिंदगी में कभी भी भूत प्रेत आपके निकट नहीं आते हैं।
- महाविद्या पाठ करने से वास्तु दोष और ग्रह दोष दूर होते हैं।
- महाविद्या अनुष्ठान करने से घर में कराई गई नरकात्मक शक्ति जैसे दूसरे के द्वारा कराई गई भूत प्रेत की बाधाएं दूर होती हैं।
- महाविद्या पाठ करने से घर में सभी प्रकार के भूत पिशाच और कठिन से कठिन कराई गई बाधाएं दूर होती हैं।
- महाविद्या अनुष्ठान करने से बड़े से बड़े दुश्मन पर विजय प्राप्त होती है।
- महाविद्या पाठ करने से घर में सुख समृद्धि शांति आती है और जिंदगी के सभी दुख तकलीफ जाए जैसा भी हो उन सभी दुख तकलीफों से मुक्ति मिलती है।
यह भी पढ़ें – नवरात्रि में मां दुर्गा के 108 नाम जप करने से पूरी होगी हर मुराद
Mahavidya Stotra ( महाविद्या स्तोत्र )
श्री गणेशाय नमः ।
आचार्य-आचार्यपण्डित-पं.पं रामलक्षण पाण्डेय -संस्कृतम्
सप्रयोग-महाविद्यास्तोत्रम् ।महाविद्यास्तोत्रम्
भाषाटीकासहितम् ।भाषाटीकासहितम्
महाविद्यां प्रवक्ष्यामि महादेवेन निर्मिताम् ।निर्मिताम्
उत्तमां सर्वविद्यानां सर्वभूताघशङ्करीम् ॥सर्वभूताघशङ्करीम्सङ्कल्पः – ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे
अमुकगोत्रः – अमुकशर्माऽहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य )
गृहे उत्पन्न भूत -प्रेत -पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये ।
विनियोगः – ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्याऽर्यमा ऋषिः,
कालिका देवता , गायत्री छन्दः, श्रीसदाशिवदेवताप्रीत्यर्थे
मनोवाञ्छितसिद्ध्यर्थे च जपे (पाठे) विनियोगः ।भगवान् शङ्कर भगवान् द्वारा निर्मित उस महाविद्या को मैं कहता
हूं, जो सब विद्याओं में श्रेष्ठ तथा सब जीवों को वश में
करनेवाली हैं । पाठकर्ता दाहिने हाथ में पुष्प , अक्षत,
जल लेकर – ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ
अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकशर्माहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य )
गृहे उत्पन्न भूत -प्रेत -पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं
झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये
इति पाठ का सङ्कल्प करे ।ध्यानम्
उद्यच्छीतांशु -उद्यच्छीतांशुरश्मि-द्युतिचय -सदृशीं फुल्लपद्मोपविष्टां
वीणा-नागेन्द्र -शङ्खायुध -परशुधरां दोर्भिरीड्यैश्चतुर्भिः ।ताहारांशु -मुक्ताहारांशुनानामणियुतहृदयां सीधुपात्रं वहन्तीं
वन्देऽभीज्यां भवानीं प्रहसितवदनां साधकेष्टप्रदात्रीम् ॥साधकेष्टप्रदात्रीम्
पश्चात् ॐपश्चात् अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्रमन्त्रस्य – से विनियोगः तक
पढकर भूमि पर जल छोड दे ।
उसके बाद उद्यच्छीतांशु से साधकेष्टप्रदात्रीं तक श्लोक
पढकर महाविद्या का ध्यान कर, ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं से आरम्भ कर,
प्रेतशान्तिर्विशेषतः तक स्तोत्र का पाठ करे ।
ॐ कुलकरीं गोत्रकरीं धनकरीं पुष्टिकरीं वृद्धिकरीं हलाकरीं
सर्वशत्रुक्षयकरीं उत्साहकरीं बलवर्धिनीं सर्ववज्रकायाचितां
सर्वग्रहोत्पाटिनीं पुत्र -पौत्राभिवर्द्धिनीमायुरारोग्यैश्वर्याभिवर्द्धिनीं
सर्वभूतस्तम्भिनीं द्राविणीं मोहिनीं सर्वाकर्षिणीं सर्वलोकवशङ्करीं
सर्वराजवशङ्करीं सर्वयन्त्र -मन्त्र-प्रभेदिनीमेकाहिकं
द्व्याहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पाञ्चाहिकं
साप्ताहिकमार्द्धमासिकं मासिकं चातुर्मासिकं षाण्मासिकं
सांवत्सरिकं वैजयन्तिकं पैत्तिकं वातिकं श्लैष्मिकं सान्निपातिकं
कुष्ठरोगजठररोगमुखरोगगण्डरोगप्रमेहरोगशुल्काविशिक्षयकरीं
विस्फोटकादिविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ वेतालादिज्वर -रात्रिज्वर-दिवसज्वराग्निज्वर-प्रत्यग्निज्वरराक्षसज्वर-पिशाचज्वर-ब्रह्मराक्षसज्वर-प्रस्वेदज्वर विषमज्वर-त्रिपुरज्वर -मायाज्वर-आभिचारिकज्वर-वष्टिअज्वरस्मरादिज्वर-दृष्टिज्वर-प्रोगादिविनाशनाय
स्वाहा । सर्वव्याधिविनाशनाय स्वाहा । सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाह
ॐ अक्षिशूल -कुक्षिशूल -कर्णशूल -घ्राणशूलोदरशूल -गलशूल गण्डशूल -पादशूल -पादार्धशूल -सर्वशूलविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ सर्वशत्रुविनाशनाय स्वाहा ।
सर्वस्फोटक -सर्वक्लेशविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ आत्मरक्षा ॐ परमात्मरक्षा मित्ररक्षा अग्निरक्षा प्रत्यग्निरक्षा
परगतिवातोरक्षा तेषां सकलबन्धाय स्वाहा । ॐ हरदेहिनी स्वाहा ।
ॐ इन्द्रदेहिनी स्वाहा । ॐ स्वस्य ब्रह्मदण्डं विश्रामय । ॐ विश्रामय
विष्णुदण्डम् ।विष्णुदण्डम् ॐ ज्वर-ज्वरेश्वर -कुमारदण्डम् ।कुमारदण्डम् ॐ हिलि मिलिमायादण्डम् ।मायादण्डम् ॐ नित्यं नित्यं विश्रामय विश्रामय वारुणी शूलिनी
गारुडी रक्षा स्वाहा ।
गंगादिपुलिने जाता पर्वते च वनान्तरे ।
रुद्रस्य हृदये जाता विद्याऽहं कामरूपिणी ॥
ॐ ज्वल ज्वल देहस्य देहेन सकललोहपिङ्गिलि कटि मपुरी
किलि किलि किलि महादण्ड कुमारदण्ड नृत्य नृत्य विष्णुवन्दितहंसिनी
शङ्खिनी चक्रिणी गदिनी शूलिनी रक्ष रक्ष स्वाहा ।अथ बीजमन्त्राः
ॐ ह्राँस्वाहा । ॐ ह्राँह्राँस्वाहा ।
ॐ ह्रीँ स्वाहा । ॐ ह्रीँ ह्रीँ स्वाहा ।
ॐ ह्रूँ स्वाहा । ॐ ह्रूँ ह्रूँ स्वाहा ।
ॐ ह्रेँ स्वाहा । ॐ ह्रेँ ह्रेँ स्वाहा ।
ॐ ह्रैँस्वाहा । ॐ ह्रैँह्रैँस्वाहा ।
ॐ ह्रोँ स्वाहा । ॐ ह्रोँ ह्रोँ स्वाहा ।
ॐ ह्रौँ स्वाहा । ॐ ह्रौँ ह्रौँ स्वाहा ।
ॐ ह्रँस्वाहा । ॐ ह्रँह्रँस्वाहा ।
ॐ ह्रः स्वाहा । ॐ ह्रः ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँस्वाहा । ॐ क्राँक्राँस्वाहा ।
ॐ क्रीँ स्वाहा । ॐ क्रीँ क्रीँ स्वाहा ।
ॐ क्रूँ स्वाहा । ॐ क्रूँ क्रूँ स्वाहा ।
ॐ क्रेँ स्वाहा । ॐ क्रेँ क्रेँ स्वाहा ।
ॐ क्रैँस्वाहा । ॐ क्रैँक्रैँस्वाहा ।
ॐ क्रोँ स्वाहा । ॐ क्रोँ क्रोँ स्वाहा ।
ॐ क्रौँ स्वाहा । ॐ क्रौँ क्रौँ स्वाहा ।
ॐ क्रँस्वाहा । ॐ क्रँक्रँस्वाहा ।
ॐ क्रः स्वाहा । ॐ क्रः क्रः स्वाहा ।
ॐ कँस्वाहा । ॐ कँकँस्वाहा ।
ॐ खँस्वाहा । ॐ खँखँस्वाहा ।
ॐ गँस्वाहा । ॐ गँगँस्वाहा ।
ॐ घँस्वाहा । ॐ घँघँस्वाहा ।
ॐ ङँस्वाहा । ॐ ङँङँस्वाहा ।
ॐ चँस्वाहा । ॐ चँचँस्वाहा ।
ॐ छँस्वाहा । ॐ छँछँस्वाहा ।
ॐ जँस्वाहा । ॐ जँजँस्वाहा ।
ॐ झँस्वाहा । ॐ झँझँस्वाहा ।
ॐ ञँस्वाहा । ॐ ञँञँस्वाहा ।
ॐ टँस्वाहा । ॐ टँटँस्वाहा ।
ॐ ठँस्वाहा । ॐ ठँठँस्वाहा ।
ॐ डँस्वाहा । ॐ डँडँस्वाहा ।
ॐ ढँ स्वाहा । ॐ ढँ ढँ स्वाहा ।
ॐ णँस्वाहा । ॐ णँणँस्वाहा ।
ॐ तँस्वाहा । ॐ तँतँस्वाहा ।
ॐ थँस्वाहा । ॐ थँथँस्वाहा ।
ॐ दँस्वाहा । ॐ दँदँस्वाहा ।
ॐ धँ स्वाहा । ॐ धँ धँ स्वाहा ।
ॐ नँस्वाहा । ॐ नँनँस्वाहा ।
ॐ पँस्वाहा । ॐ पँपँस्वाहा ।
ॐ फँस्वाहा । ॐ फँफँस्वाहा ।
ॐ बँस्वाहा । ॐ बँबँस्वाहा ।
ॐ भँस्वाहा । ॐ भँभँस्वाहा ।
ॐ मँस्वाहा । ॐ मँमँस्वाहा ।
ॐ यँस्वाहा । ॐ यँयँस्वाहा ।
ॐ रँस्वाहा । ॐ रँरँस्वाहा ।
ॐ लँस्वाहा । ॐ लँलँस्वाहा ।
ॐ वँस्वाहा । ॐ वँवँस्वाहा ।
ॐ शँस्वाहा । ॐ शँशँस्वाहा ।
ॐ षँस्वाहा । ॐ षँषँस्वाहा ।
ॐ सँस्वाहा । ॐ सँसँस्वाहा ।
ॐ हँस्वाहा । ॐ हँहँस्वाहा ।
ॐ क्षँस्वाहा । ॐ क्षँक्षँस्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ लेषाय स्वाहा । ॐ गणेश्वराय स्वाहा ।
ॐ दुर्गे महाशक्तिक-भूत -प्रेत -पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षससर्ववेताल -वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ ब्रं ब्रह्मणे स्वाहा । ॐ विं विष्णवे स्वाहा ।
ॐ शिं शिवाय स्वाहा । ॐ सूं सूर्याय स्वाहा ।
ॐ सों सोमाय स्वाहा ।
ॐ विं विष्णवे स्वाहा । ॐ शिं शिवाय स्वाहा ।
ॐ सूं सूर्याय स्वाहा । ॐ सों सोमाय स्वाहा ।
ॐ मं मंगलाय स्वाहा । ॐ बुं बुधाय स्वाहा ।
ॐ बृं बृहस्पतये स्वाहा । ॐ शुं शुक्राय स्वाहा ।
ॐ शं शनैश्चराय स्वाहा । ॐ रां राहवे स्वाहा ।
ॐ कें केतवे स्वाहा । ॐ महाशान्तिक-भूत प्रेत -पिशाच-राक्षसब्रह्मराक्षस-वेताल -वृश्चिकभयविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ सिंह -शार्दूल -गजेन्द्र -ग्राह-व्याघ्रादिमृगान् बध्नामि व्याघ्रादिमृगान् स्वाहा ।
ॐ शस्त्रं बध्नामि स्वाहा । ॐ अस्त्रं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ आशां बध्नामि स्वाहा । ॐ सर्वं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ सर्वजन्तून् बध्नामि सर्वजन्तून् स्वाहा ।
ॐ बन्ध बन्ध मोचनं कुरु कुरु स्वाहा ।दिग्बन्धनम्
ॐ नमो भगवते रुद्राय
महेन्द्रदिशायामैरावतारूढं हेमवर्णं वज्रहस्तं
परिवारसहितं इन्द्रदेवताधिपतिमैन्द्रमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ ऐन्द्रमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय
अग्निदिशायां मार्जारारूढं शक्तिहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिमग्निमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अग्निमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय
दक्षिणदिशायां महिषारूढं कृष्णवर्णं दण्डहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं यममण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ यममण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ नमो भैरवाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ नैरृत्यदिशायां प्रेतारूढं खड्गहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं नैरृत्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नैरृत्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्रां क्रीं क्रूं क्रैं क्रौं क्रः स्वाहा ।
ॐ पश्चिमदिशायां मकरारूढं पाशहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वरुणमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वरुणमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ वायव्यदिशायां मृगारूढं धनुर्हस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं वायव्यमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ वायव्यमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ उत्तरदिशायां यक्षारुढं मदाहस्तं परिवारसहितं
दिग्देवताधिपतिं कुबेरमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ कुबेरमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा ।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ अग्निदिशायां कूर्मारूढं लोष्ठभागं कुपरिघहस्तं
स्वपरिवारसहितं दिग्देवतधिपतिं पातालमण्डलं बध्नामि स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ भैरवाय स्वाहा ।
ॐ गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै नमः स्वाहा ।
ॐ पातालमण्डलं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष माचल माचल
माक्रम्य माक्रम्य स्वाहा।
ॐ ह्राँह्रीँ ह्रूँ ह्रैँह्रौँ ह्रः स्वाहा ।
ॐ क्राँक्रीँ क्रूँ क्रैँक्रौँ क्रः स्वाहा ।
ॐ दुर्गे महाशान्तिक-भूत -प्रेत -पिशाच-राक्षसब्रह्मराक्षस-वेताल -वृश्चिकादिभयविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ पूर्वदिशायां व्रजको नाम राक्षसस्तस्य
व्रजकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ अग्निदिशायामग्निज्वालो नाम राक्षसस्तस्याग्निज्वालस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां वध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ दक्षिणदिशायामेकपिङ्गलिको नाम राक्षसस्तस्यैकपिङ्गलिकस्याष्टा दशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ नैरृत्यदिशायां मरीचिको नाम राक्षसस्तस्य
मरीचिकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ पश्चिमदिशायां मकरो नाम राक्षसस्तस्य
मकरस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ वायव्यदिशायां तक्षको नाम राक्षसस्तस्य
तक्षकस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ उत्तरदिशायां महाभीमो नाम राक्षसस्तस्य
भीमस्याष्टादसकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ ईशानदिशायां भैरवो नाम राक्षसस्तस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा ।
ॐ अधः दिशायां पातालनिवासिनो नाम राक्षसस्तस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य तस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ ब्रह्मदिशायां ब्रह्मरूपो नाम राक्षसस्तस्य
ब्रह्मरूपस्याष्टादशकोटिसहस्रस्य पिशाचस्य दिशां बध्नामि स्वाहा ।
ॐ अस्त्राय फट् स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वाहा । ॐ नमो भगवते भैरवाय स्वाहा ।
ॐ नमो गणेश्वराय स्वाहा । ॐ नमो दुर्गायै स्वाहा ।ॐ नमो महाशान्तिक-भूत -प्रेत -पिशाच-राक्षस-ब्रह्मराक्षसवेताल -वृश्चिकभयविनाशनाय स्वाहा ।
ॐ शिखायां मे क्लीं ब्रह्माणी रक्षतु ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ शिरो मे रक्षतु माहेश्वरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ भुजौ रक्षतु सर्वाणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ उदरे रक्षतु रुद्राणी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ जङ्घे रक्षतु नारसिंही ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ पादौ रक्षतु महालक्ष्मी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
ॐ सर्वाङ्गे रक्षतु सुन्दरी ।
ॐ ह्रां ह्रीं व्रीं व्लीं क्षौं हुं फट् स्वाहा ।
परिणामे महाविद्या महादेवस्य सन्निधौ ।
एकविंशतिवारं च पठित्वा सिद्धिमाप्नुयात् ॥सिद्धिमाप्नुयात् १॥
स्त्रियो वा पुरुषो वापि पापं भस्म समाचरेत् ।समाचरेत्
दुष्टानां मारणं चैव सर्वग्रहनिवारणम् ।सर्वग्रहनिवारणम्
सर्वकार्येषु सिद्धिः स्यात् प्रेतशान्तिर्विशेषतःस्यात्प्रेतशान्तिर्विशेषतः ॥ २॥
इति श्रीभैरवीतन्त्रे शिवप्रोक्ता महाविद्या समाप्ता ।
अथाऽस्य स्तोत्रस्योत्कीलनमन्त्रः ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।सर्वतोमुखम्
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
अष्टोत्तरशतमभिमन्त्र्य जलं पाययेत् अथवा पाययेत् कुशैर्मार्जयेत् ।कुशैर्मार्जयेत्
इति सप्रयोगमहाविद्यास्तोत्रं समाप्तम् ।समाप्तम्
महादेव के समीप में इस महाविद्यास्तोत्र के इक्कीस बार पाठ करने
से सिद्धि प्राप्त होती है ॥ १॥चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।
दुष्टों का मारण तथा सब ग्रहों की शान्ति भी होती है ।
और सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है । विशेष करके
प्रेतबाधा की शान्ति निश्चित रूप से होती है ॥ २॥
इस प्रकार श्रीभैरवी तन्त्र में भगवान शंकर से कही गयी
महाविद्या समाप्त हुई ।
इस स्तोत्र का उत्कीलन मन्त्र है – ॐ उग्रं वीरं से – नमाम्यहम्
तक । इस मन्त्र से एकसौ आठ बार जल को अभिमन्त्रित कर पिलाना
चाहिये अथवा कुश से मार्जन करे ।